महक यादो की मन में
बन गई मेरी परछाई।
तुम्हारी वाट जोह रही
रूह में तूफान गहराई।
पुकारे मन तुम्हें पल पल
तुम्हारी अन्दर घटा छाई।
सताओ ना मिलों आकर
हो ना जाऊँ कही पराई।
कभी अधरों की लाली
मोह लेती थी पुरवाई।
टटोलते थे मेरी जुल्फों में
रहती नही थी तन्हाई।
प्रेम की रिमझिम में
जल मग्न हो गई खाई।
बहकना चाहती 'उपदेश'
तुम्हारी बाहें मेरी दवाई।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद