ज्ञानेंद्रियों का प्रेम तो मौत तक ही स्थिर है,
प्रेम तो मन का,
प्रेम तो जीवन का है,
प्रेम तो अपेक्षाओं से परे,
प्रेम तो एक सोच,
प्रेम एक पहलू है,
प्रेम एक दृश्य है,
प्रेम शांति है मगर,
उसने गुनगुनाने की क्षमता,
प्रेम एक लहज़ा है,
कोई प्रेम में मिलता है,
कोई प्रेम से मिलता है,
प्रेम बिछड़ना भी है,
स्वयं से मगर,
दूरी को दृष्टा समझता है,
आशा से जुड़कर कोई क्यों प्रेम करता है,
आजीवन असफल,
वह भी तो प्रेम करता है,
प्रेम की दूरी त्वचा से स्पर्श नहीं होती,
प्रेम में कदम नहीं हरदम चले,
प्रेम को कोई क्यों स्वीकार करता है,
आजीवन कोई शून्य नहीं,
सुनने से भी प्रेम बढ़ता है,
कहने की तहज़ीब क्यों सीखे कोई,
पल-पल विचार बदलता है,
विचार से मतलब प्रेम नहीं,
प्रेम कोई विचार नहीं,
नहीं अगर प्रेम करो तो विचार भी करना पड़े,
विचार ही करना है तो प्रेम क्यों करना पड़े,
सहसा आ जाए याद भूलने की,
प्रेम में कोई दशा नहीं,
दिशाओं में छुपा कर शीघ्रता प्रेम पर,
विश्वास की शीघ्रता नहीं,
संघर्ष अपने पलक पर कोई आंसू रखता नहीं,
यह विचार है कि प्रेम तो किसी को बेचैन करता नहीं।।
- lalit Dadhich.