आजकल तुम हमारी नज़रों से गुम - शुदा सी रहती हो,
क्यों हमसे इतना बच - बचकर चल रही हो ?
शरीक भी नहीं होती हो अब किसी महफ़िल में,
क्यों हमसे इतनी दूर - दूर रहती हो ?
आजकल तुम आंखों से ओझल सी रहती हो,
क्यों हमसे इतना डरने लगी हो ?
मिल जाए हम कहीं किसी मोड़ पर तुम्हें,
तो क्यों हड़बड़ी में रास्ता बदल निकल जाती हो ?
मालुम है हमे, खता तो हमसे कोई हुई नहीं,
फिर क्यों इतनी उखड़ी - उखड़ी सी रहती हो ?
कभी हमसे मिलने को बड़ी ही उतावली रहती थी,
फिर अब क्यों हमसे ना मिलने के बहाने
बनाने लगी हो ?
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️