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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

आंखों से ओझल

आजकल तुम हमारी नज़रों से गुम - शुदा सी रहती हो,
क्यों हमसे इतना बच - बचकर चल रही हो ?
शरीक भी नहीं होती हो अब किसी महफ़िल में,
क्यों हमसे इतनी दूर - दूर रहती हो ?

आजकल तुम आंखों से ओझल सी रहती हो,
क्यों हमसे इतना डरने लगी हो ?
मिल जाए हम कहीं किसी मोड़ पर तुम्हें,
तो क्यों हड़बड़ी में रास्ता बदल निकल जाती हो ?

मालुम है हमे, खता तो हमसे कोई हुई नहीं,
फिर क्यों इतनी उखड़ी - उखड़ी सी रहती हो ?
कभी हमसे मिलने को बड़ी ही उतावली रहती थी,
फिर अब क्यों हमसे ना मिलने के बहाने
बनाने लगी हो ?

✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut hi lazwaab Uttam rachna Mam saadar pranam 🙏🙏

रीना कुमारी प्रजापत replied

Shukriya 🙏

Lekhram Yadav said

सुप्रभात सहित नमस्कार मेरी प्यारी बहना, आप मुझसे ओझल हो सकती हैं पर दिल से दूर नहीं हो सकती, आप अपना गम हमसे शेयर न करें तो कोई बात नहीं,मगर कम से कम लिखनतु पर हमसे दूर न हों।रचना हमेशा की तरह अच्छी है, आपको सादर नमस्कार।

रीना कुमारी प्रजापत replied

Nahi nahi hum bhala likhantu se dur kaise ho sakte hai thodi busy hu isliye time se nhi aa pa rahi hu, baaki apne pariwar se bhi koi dur rah sakta hai kya

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