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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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कविता की खुँटी

                    

लोग खुद को भी छलते रहे..

मिला क्या इन रिश्तों से कुछ भी नहीं
हम कांटों पे चलते रहे और वो देखर मुझे मुस्कुराते रहे।
वफ़ा थी ना थी कोई सच्चाई
ना थी दिल से किसी के लिए भलाई।
बस लोग यूहीं मुझे छलते रहे
और हम अपनी गलती कहें या अनाड़ीपन
अपने आप में हीं गलते रहे।
और देखकर लोग मुझे मुस्कुराते रहे।
दुनियां के मेले में हम थे अकेले और खुद को साकि संग घिरे समझते रहे।
जब आंख खुली तो तन्हाई थी
और हम यूहीं अकेले महफिलों में मचलते रहे।
लोगों को शायद हम पसंद हैं ये समझकर उनसे मिलते रहें पर था क्या पता की मुझे देख लोग मुझसे जलते रहे।
पर हम अनाड़ी होकर शुद्ध हैं तो ठीक हीं हैं
वरना लोग मिलावट कर के भी शुद्ध बनते रहे।
दूसरों को हीं नहीं बल्कि खुद को भी छलते
रहे ..
लोग खुद को भी छलते रहे...




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

Vineet Garg said

आजकल दुनिया में दिखावा ही इतना है कि लोग कब अपने आप से झूठ बोलने लग जाते हैं उन्हें भी नहीं पता

Manju Sharma said

लोगों की बातों पर उनके और उनके रवैया पर तो ध्यान ही नहीं देना चाहिए परिस्थिति के हिसाब से लोग अपने विचार बदल देते हैं आजकल तो गिरगिट भी परेशान है कि इंसान इतनी रंग बदल कैसे लेता है

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