किताबें खूब पढ़ी जिन्दगी न समझ आई।
जिन्दगी का फलसफा महबूब समझ पाई।।
इंसानों की परख करते जिंदगी गुज़री मेरी।
धोखेबाज कई मिले मुस्तफ़ा समझ पाई।।
ठोकरें लगने नही दी सम्भाला 'उपदेश' ने।
बड़ी देर में मेरी जान मोहब्बत समझ पाई।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद