गुज़रे जाता है, इस दौर का वक्त–ए–कारवां..
कहीं मंज़िल रूबरू, तो कहीं रास्ता धुआं धुआं..।
हाथ से सलाम का इशारा ही, काफ़ी है अब तो..
सुनने को कोई क्यूं ठहरे, दर्द ए दिल की दास्तां..।
आंखों के आंसुओं ने, जाने क्या क्या कहा उनसे..
वफ़ा थी हमारी,उनकी ज़फ़ा पर खुली नहीं जुबां..।
बहारों के जनाजे उठे, तो बात कुछ जुदा ही थी..
बादल तो बरसे ही नहीं, और रोता रहा आसमां..।
किसी भी तरह जब, ज़माने को मना न सका मैं..
कहता फिरा कि, कुछ तो वक्त नहीं था मेहरबां..।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




