मेरा दिल हैरान और परेशान है,
मकान कच्चा, सर पे तूफान है।
बारिश की चाहत ख़ुश्क ज़मीं पे,
वही बद्दुआ है, वही अहसान है।
कौन समझे, किसी की खामोशी,
वो कहे तो कैसे, जो बेजबान है।
उसकी मर्जी जैसा चाहे वैसा करे,
ये मेरा नहीं, उसका इम्तिहान है।
मैं जिसको अपना मान लेता हूँ,
वही जता देता है, वो मेहमान है।
🖊️सुभाष कुमार यादव