हर आदमी काबिल है ..
कबलियत मिलती नहीं हासिल करनी पड़ती है।
लहरों की थपेड़ों से कस्ती खुद हीं बचानी पड़ती है।
है हौसला तो उठ दौड़ लगा बिना चले
मंज़िल कहां हासिल होती है।
जिन्हें शौक़ होता है फेमस होने की
उन्हें नींद चैन कहां नसीब होती है।
अरे लगातार चप्पू चलाने वालों के ही तो
साहिल क़रीब होती है।
सपने देखने अच्छी बात होती है
पर उन्हें अमलीय जामा भी तो पहनना पड़ता है।
सिर्फ़ ख्याली पुलाव पकाने से कुछ करीब नहीं होता।
होता वही है जो तेरे कर्मों के नसीब में होता है।
जैसा कर्म वैसी हीं मर्म
सो जो जैसा करेगा
वैसा पाएगा
तू अपने मेहनत की लकीरों से
अपनें नसीबों की लकीरें बदल डाल।
जो चाहता है वो सब हासिल कर डाल।
ये दुनियां एक हीं है एक हीं हवा पानी अग्नि भोजन है।
तो फिर अलग अलग गुणों का क्यूं प्रयोजन है।
ये सब अपने कर्मों के योजन हैं।
सिर्फ़ कर्मों से हीं नसीबों का विभाजन है।
तू किस रावण की चकाचौंध में खोया है
देख तेरे अंदर हीं बैठा शांति प्रिय तर्क संगत न्याय प्रिय विभीषण है।
सो दफ़न कर रावण को
तू विभीषण जगा।
देख तेरे लिए राम आयेंगे।
वो जो सब कुछ तूने सोंच रक्खा है
वो सब दे जायेंगें।
अरे इसके लिए ताक़त हिम्मत साहस
और कबलियात की ज़रूरत होती है।
दुनियां में उन्हें सबकुछ मिलती है।
जिनके पास कबलियत होती है।
इसलिए ख़ुद को काबिल बना
और दुनियां पर छा जा...
और दुनियां पर छा जा...