अब कौन चूमता होगा तेरे गालों को।
चाह की सजा दे रही चाहने वालों को।।
जब से इश्क में हारा दिल रोता रहता।
रोको आकर तुम इन बढ़ते छालों को।।
सताती यादें जब भी काले बादल देखूँ।
खो जाता मन जैसे छेड़े काले बालों को।।
फकत तेरी ही चाहत बेताबी मन समझे।
अब तुम बालिग़ हो दूर करो दलालों को।।
तुमको उपवन में थी मोच आई 'उपदेश'।
दाद दे रही थी सुनकर उन ग़ज़लों को।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद