क्यूँ पूछता हूँ मैं, ये किसकी भूल है?
क्यूँ सवाल आता, किसे समझाएँगे हम?
जिस देश में हर मील पर भाषा बदलती,
वहाँ एक बात पर कैसे टिकेंगे हम?
यह मन की नदी का मंथन है,
अब जान लो!
हवा और पानी अब दोनों बीमार हैं!
वो तीस की टोली, वो लाखों की भीड़,
सब देख रहे हैं, जीवन ही उधार है!
हम सोचते रहे, वो आएगा बदलने को, वो नेता, वो धनी, वो बड़ी कंपनी।
मगर पता चला, जब साँस ही अटकी,
यह आग तो अपनी ही लाई हुई है, अपनी ही बनी।
क्यूँ भीतर ही भीतर उठती है होड़?
क्यूँ श्रेय की लड़ाई में उलझ जाते हो?
अरे! प्रदूषण ने न पूछा धर्म तुम्हारा, तो मिलकर लड़ते क्यूँ सकुचाते हो?
हाँ, हर मन है अलग! पर घर एक है!
हाँ, हर भाषा अलग! पर दर्द एक है!
न दोष दो किसी को, न राह देखो अब,
तुम ही आरंभ हो, तुम ही हर तब!
उठो! न समझने का समय,
न समझाने का है!
अब तो बस करने का, ज़मीन पर उतर जाने का है!
- ललित दाधीच


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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