माना उजड़ गई दुनिया तेरी मगर तू दिल-ए-बेज़ार न कर
जाने वाला कभी नहीं आता अब तू उसका इंतज़ार न कर
शहीद कभी मरते नहीं वो तो अमर रहते हैं
अश्कों के पुष्प बिखरा कर तुम उनका तिरस्कार न कर
अंधेरा आया है तो आएगा उजाला भी इक दिन वाक़िफ़ हैं सभी
दिल पर हो कोई दस्तक नई तो सुनने से इंकार न कर
उम्र है अभी बहुत कच्ची और ज़िन्दगी की राहें लम्बी
ऐसे में तन्हा-तन्हा क्यूंँ चलना तन्हाई अंगीकार न कर