उनकी याद के थपेड़े घायल कर गए मन।
बनावटी उसूल डूबे जवानी ले गई अमन।।
बदली राह फिर भी ये नजर भटक जाती।
एक तस्वीर सताती जिसके आदी रहे हम।।
तन्हाई रास आती शिकायत अब नही भाती।
दीवाने अब भी हैं दीवाने पहले भी रहे हम।।
सुख भरी वेला गुजारी ख्वाब जिंदा आज भी।
धूप के आदी नही थे उनकी छाया में रहे हम।।
हँसाती पीर ज़ख्मों की पुरवईया के चलने पर।
गुम से हो गए हम तब से एक सदमे में रहे हम।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद