कापीराइट गजल
दर्द मेरे जख्म का, न जाने कब संवारोगे
और कितने दिन मुझे यूं दर्द से गुजारोगे
हमें जख्म नया देने की जारी हैं कोशिशें
ये कौन सी कोशिश से अब मुझे गुजारोगे
जख्म देने के बहाने ढूंढ़ते हो हर समय
किस जख्म से मुझे आज फिर गुजारोगे
मुझे दर्द इस जख्म का होता नहीं सहन
इस दर्द से मुझे कब तक यूंही गुजारोगे
माना कि दिल तुम्हारा साफ है लेकिन
इस हालात से मगर कब मुझे उभारोगे
देते हो दर्द मुझे तुम समझ कर अपना
मालूम था क्या हमें यूं दर्द से गुजारोगे
बात कब से कह रहा है ये तुमसे यादव
जिन्दगी को आकर के तुम कब संवारोगे
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है