जिगरी थे दोस्त , बचपन के चार ,
पढलिखकर तलाशने लगे रोजगार,
खटखटाए सरकारी-निजी सारे द्वार ,
बेरोजगारी के दौर में उल्टी - मार,
कॉन्ट्रेक्ट - आउटसोर्स की भरमार,
अधिकृत - शोषण व घटिया - पगार,
विचार-विमर्श कहां जाएं चारों यार,
अंततः चयनित किया स्व-रोजगार,
कड़ी मेहनत से बेहतरीन कारोबार,
होने लगे खुशहाल वे चारों परिवार,
सुबह - शाम बस में होते थे सवार,
धक्का-मुक्की भीड़-भड़क्का अपार,
तंग होते बस में चढ़ते-उतरते बार,
अक्सर देर हो जाती पहुंचने बाजार,
गाड़ियों का धुआं प्रदूषण की मार ,
हो न जाए प्रदूषण से बीमार- बेकार,
एक दिन एकमत हो गए चारों यार,
खरीदते है सांझी इलेक्ट्रिक- कार,
संयुक्त-अंशदान बैंक-लोन स्वीकार,
ड्राइविंग सीखकर बने चालक समझदार,
खुशमिजाज यार होते रोज कार में सवार ,
वायु प्रदूषण-मुक्त गाड़ी सीमित- रफ्तार,
ट्रैफिक-नियम पालन नियमित- संस्कार,
सड़क-सुरक्षा जीवन-रक्षा उनकी गुहार ,
पढ़े लिखे युवाओं को सिखाते संस्कार ,
तोड़ो बेरोजगारी और गरीबी की दीवार ,
स्वरोजगार अपनाओ करो सपने-साकार ,
बुलंद - हौसले तो संभावनाएं हैं अपार ,
दो जून की रोटी सुखी घर-परिवार- संसार !
✒️ राजेश कुमार कौशल
[हमीरपुर , हिo प्रo]