उनकी खुलती है जब भी जुबां, होता है वार हम पे..
ना जाने कितने इल्ज़ाम, रख छोड़े हैं, उधार हम पे..।
इस ज़मीं को तो न जाने, कौन फिरता है उठाए हुए..
आ गया है बेवज़ह ही, मगर आसमां का भार हम पे..।
हमने तो निभाए हैं, उसूल·ए·तिजारत ज़माने भर के..
फिर क्यूँ शक–ए–निगाह रखे हुए है, बाज़ार हम पे..।
मेरी खातिर न तलाशिए, कीमिया–ए–चारागर कोई..
ये तो मौसम को देखकर आया है, कोई बुख़ार हम पे..।
देखता हूं आसमां की जानिब, वहशत–ए–निगाह से..
दिखती नहीं मगर, लटकी हुई है, कोई तलवार हम पे..।
पवन कुमार "क्षितिज"


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







