कविता : लाठी...
उमर अपनी हो गई अब
पैंसठ और साठी
चलने फिरने दिक्कत आई
खरीद लिया लाठी
अब तो यही लाठी
जबरदस्त सहायक है
बाकी सब बेकार
यही मेरे लायक है
बाकी सब बेकार
यही मेरे लायक है.......
netra prasad gautam