उतार–चढ़ाव, घुमाव–फ़िराव ज़िन्दगी..
खुशियों और गमों का, दोहराव ज़िन्दगी..।
बाज़ार के हाथों, जो वो मासूम पड़ गई..
फिर कभी भाव, कभी बे–भाव ज़िन्दगी..।
मलहम के इंतज़ार में, बैठे थे हम तो मगर..
जाने फिर क्यूं दे गई, कई कई घाव ज़िंदगी..।
कभी फूलों पर जमी, सफ़ेद बर्फ़ की तरहा..
कभी नदियों, और हवाओं का बहाव ज़िंदगी..।
इसके रंग–रूप भी, अज़ब–ग़ज़ब हैं दोस्तो..
कभी बैराग तो कभी, दुनिया का चाव ज़िंदगी..।
पवन कुमार "क्षितिज"