तुम्हारे मन की बात मैं जानता हूँ पर
तुम मेरे मन की बात नहीं जानते हो
हम तुम्हें अपना मानते रहे हैं हमेशा
तुम हमें अपना मगर नहीं मानते हो
भरी धूप में चलके पाँव जलते रहे हैं
घनी छाँव में तुम अब मिलते नहीं हो
ये नादान बच्चे हैं उछल कूद में खुश
ममता के साये से तो निकले नहीं हो
हुआ दास धूमिल बहुत अपना चेहरा
जमीं धूल आईने क्यूं बदलते नहीं हो II