सबके सब जलते या बुझते हैं जमीं पर आसमां में आदमी का चिराग़ नहीं जलता
कुछ लोग कहते हैं खुदा नहीं है मगर उसे बोलने का मुंह देखने को आँखें किसने दिया
जिसका गर्दन टेहरा होगया साइंसदान बने मगर अपनी गर्दन सीधा न कर सका
जमीं से ऊपर आसमां के नीचे बेगैर किसी सहारे चिराग़ न जला न ही जलेगा कभी
उम्र हमारी तकरीबन भूख से गुजरी हर तकलीफें में सब्र मगर वह मेरे दिल से नहीं निकलता
तहकीक में आया है मेरे धनमान में हर कोई खौफ खुदा नहीं रखते दिखावे का नाम लेता है
वसी अहमद क़ादरी ! वसी अहमद अंसारी !
मुफक्किर ए कायनात ! मुफक्किर ए मखलूकात
दरवेश ! लेखक ! पोशीदा शायर! 8.12.25


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







