(कविता ) (पीडित अाैर ढाबा वाला)
पीडित -इ स बाढ में सारा गावं अाैर
मेरा पूरा परिवार बह गया,
वहाँ पर केवल मैं
बदनसीवअकेला ही रह गया।।
चार पाँच राेज हुवा
खाना भी नहीं खाया हूं,
साहब अाप के पास बडी
उम्मीद ले कर अाया हूं।।
अाप के इ स ढाबे में
मैं पीडित काे रखलाे,
बर्तन पतीला माझूंगा
जरा मुझकाे देखलाे।।
ढाबा वाला-तेरे जैसे चालू लाेग
छत्तीस अाते हैं,
फिर चूना लगा कर
छत्तीस ही जाते हैं
तुम जैसाें काे कैसे
नाेकरी दे दूं यार,
असल में तुम सब
हाेते हाे बेकार।।
पीडित -नाेकरी ना दाे सही अाप के
यहाँ काम बहुत बडा है,
जुठे बर्तन काफी हैं
पतिला भी जुठा पडा है।।
पिछवाडे में जा कर
बर्तन पतिला धाेता हूं,
फिर साहब अाप के
पास हाजिर हाेता हूं।।
ढाबा वाला-तू अादमी बहुत
शंकास्पद लगता है,
पिछवाडे जा कर भान्डे माजने
के बजाए भाग भी सकता है।।
यदि पिछवाडे से मेरा
पतिला ले कर भाग जाएगा ताे,
बहुत दूर जा कर
उसे बेच कर खाएगा ताे।।
हम कहाँ तेरे काे
ढूंडने जाएंगे?
ढूंढ कर भी कहाँ
तुझकाे पाएंगे?
पीडित -साहब कैसे हाे न
दया न प्यार है,
अाप से उम्मीद करना
अब बेकार है।।
चलाे अाैर न सही बा स
ये ब्यवस्था मिला दाे,
पेट में चूहे दाैड रहे
शब्जी के साथ राेटी ही खिला दाे।।
ढाबा वाला-सुबह-सुबह यार
ये ताे बाेहनी की घडी है,
अरे तुझे खाने काे पडी है।।
अरे तुझे खाने काे पडी है.......