खुले आसमां में सोई थी मैं,
चांद,तारों से बातें कर रही थी मैं।
आज रात मेरी आंखों में नींद न थी,
दर्द जो हद से ज़्यादा सह रही थी मैं।।
पूछा मैंने चांद से ऐ चांद मुझे ये बता,
किया क्या था गुनाह मैंने
जिसकी मिल रही है मुझे सज़ा। पूछा मैंने एक सवाल उन सितारों से भी,
क्यों हो रहा है मेरे साथ ये सब,
ये तुम मुझे बताओ ज़रा।।
ना चांद ने जवाब दिया,
ना सितारों ने जवाब दिया।
ली ना मैंने नींद की एक भी झपकी,
और पूरी रात को इनसे सवालों में गुज़ार दिया।।
मुझे फिर भी नहीं है उस खुदा से कोई गिला,
ज़िंदगी में एक पल का सुकून ना मिला।
दर्दों ग़म हर जगह मिले,
पर खुशियों का ठिकाना ना मिला।।
चांद तारों ने तो जवाब ना दिया,
पर सुन मेरा दर्द ये आसमां रो दिया।
क्यों ये मेरी ज़िंदगी दुःखों में बॅंटी है,
मेरे इन सवालों का मुझे किसी ने जवाब ना दिया।।
~रीना कुमारी प्रजापत