माता पिता पर बहस चलती कभी-कभी।
बनावटी जैसी लगने लगती कभी-कभी।।
पितृत्व की कीमत बहुत ज्यादा देखी गई।
मातृत्व भी लगभग उतनी होती कभी-कभी।।
विपदा में माँएँ रो लेती अकेले में बैठकर।
पिलाओ को देखा गया सोचते कभी-कभी।।
सब पिता एक जैसे नही मगर होते पिता।
माताएँ खैर खबर रखती हताश कभी-कभी।।
अपमान पिता को कुछ भी भूलने नही देता।
माताएँ सम्हाली 'उपदेश' सब को कभी-कभी।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद