तंज के तीर बहुत ही गहरी मार करते हैं
हँसते हुए दिल के टुकड़े हजार करते हैं
जुबाँ की तेग कलम कर देती है सिर भी
बिगड़े हुए सुर जहन्नुम के पार करते हैं
बरबस नहीं होता कोई बेवफा ज़माने में
बिगड़े हुए सुर सबको बे करार करते हैं
कहना है जहाँ जादा सुनना है जरा कम
बात के सिकंदर खुलके शिकार करते है
नाजुक जरा खुदा ने है दास दिल बनाया
हम इसकी जुम्बिशों पर एतबार करते हैं ||