खुली और मुँदी आँखो से उडने को बढी।
जमाना जानता उन्नति के मुँहाने पर खडी।।
माँ की बगिया की अनमोल कली 'उपदेश'।
फूल बन खुशबू फैलाने को एक कदम बढी।।
दिनो दिन नारी शक्ति का साकार रूप लेती।
हिचकती ही नही सृजन के लिए आगे बढी।।
कल्पना कोई कोरी कल्पना नही हकीकत में।
पढ लिखकर काबिल उडान भरने को बढी।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद