भीगना तुमने साथ चाहा था,
हमने बारिश का इंतज़ार किया।
तुमको एहसास क्यूं नहीं होता,
कितना बिखराव मेरे अंदर है।
लोग हमको बुरा समझते हैं,
अच्छा होना भी कितना मुश्किल है।
सब के सब ख़ुद को कहते हैं आला,
फिर यहां कौन किससे कमतर है।
अब गुज़ारा नहीं ख़ामोशी से,
हम भी अपना मिज़ाज बदलेंगे।
मुझे हिजाब में तू बे'हिसाब रखता है।
मेरे सवालों का भी क्या जवाब रखता है।
गैर मुमकिन नहीं था फिर भी मुझे,
भूलने की तो कोशिशें करते।
मेरी किस्मत तो हो नहीं सकता,
तू किसी और का मुक़द्दर है।
ज़ाहिर किसी के सामने मत दर्दे-दिल करो,
दुनिया वगरना रोज़ तमाशा बनाएगी।
रौनक़े - ज़ीस्त है तेरे दम से,
वरना बे'आब ज़िन्दगी होती।
डाॅ ○फ़ौज़िया नसीम शाद