विगत पच्चीस सालों से
अपनी पत्नी की तलाश में
दर-२ भटक रहा एक बुजुर्ग
शायद कहीं मिलन हो जाए
किस्मत के मारे इस साल
"मतदान" के सुअवसर पर
अपनी धर्मपत्नी "मतदेवी" से
और आखिरकार ले ही आए
दिल - ए - अरमान बुजुर्ग को
आशा की धूमिल किरण के साथ
वोट के दिन मतदान - केंद्र पर
हाथ - जोड़ - नतमस्तक होकर
करके "मतदेवी" का , अंतर्ध्यान
किया बुजुर्ग ने अमूल्य-मतदान
फिर पूछा , मतदान-अधिकारी से
देखना , मेरी धर्मपत्नी "मतदेवी"
मतदान कर गई है या अभी नहीं
देखकर अधिकारी सम्पूर्ण - सूची
उत्तर मिला, जी कर गई हैं मतदान
आपसे केवल पच्चीस मिनट पहले
"बुजुर्ग"आखिरकार , हुए हताश
बैठे मतपेटी पर , होकर निराश
बोले , खोलो पेटी , करो तलाश
मेरी पत्नी की कहां छिपी है लाश
टीम ने उसे खूब समझाया-बुझाया
" बुजुर्ग " जोर २ से रोया-चिल्लाया
मैं आज तक भी समझ नहीं पाया
"ए - मतदान" तेरी है अजीब माया
हर पांच साल के अंतराल के बाद
कैसे कहां कब किस-२ के साथ
चोरी - २ चुपके - २ से आती है
मेरी मृतक धर्मपत्नी "मतदेवी"
और मतदान करके हो जाती है
छूमंतर एकदम मतदान - केंद्र से
आगामी पांच - वर्षीय चुनावों के
रहस्यमयी मतदान - दिवस तक
विगत पच्चीस - सालों से !
✒️ राजेश कुमार कौशल