अब मैं कहना चाहता शुक्रिया तुम्हारा।
तुमने आँखों से पर्दा हटा दिया हमारा।।
पहले भी सोचा था तब भूत सवार रहा।
सफलता हासिल हुई श्रेय उसमें तुम्हारा।।
आदत ये भी नई नही ध्यान में वही भाव।
जो जाता ही नही इशारा उसमें तुम्हारा।।
बुरा तो लग रहा मगर इसमें फायदा मेरा।
बड़ी बीमारी से बचाया प्रेम उसमें तुम्हारा।।
दूर से भेंट स्वीकारो 'उपदेश' खुशी इसमें।
नजर डबडबाने में खेद रहा उसमें हमारा।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद