वह माँ –
समय की धूल में ढकी,
जीवन की आंधियों में झुलसी,
बुढ़ापे के सन्नाटे में अकेली खड़ी।
घर – उसका नाम, उसकी पहचान,
पर बेटों और बहुओं ने उसे बोझ बना दिया।
दीवारें गूँजती थीं –
“तुम अब सिर्फ़ भार हो,
तुम्हारे खून की कीमत अब हमारी सुविधा है।”
रातें लंबे सन्नाटे में ढलीं,
जहाँ चूल्हा बुझा और मन की आग दम तोड़ती रही।
बेटा अपने स्वार्थ में खोया,
बहू की आँखों में क्रोध और हँसी का संगम था।
और माँ –
उसका दिल, उसकी आत्मा,
सन्नाटे में अकेली,
पर भीतर से टूटती नहीं।
एक दिन –
बहू की बेरहम हँसी में निहित जहर,
टाइल्स पर गिरा माँ का शरीर,
खून बहा –
जैसे वर्षों का विश्वास, प्यार और आदर
एक क्षण में बह गया।
बेटा वहाँ था –
देखकर भी नहीं आया,
अपनी दुनिया में उलझा।
माँ ने महसूस किया –
स्वाभिमान पर चोट पहुँचाना आसान है,
पर आत्मा को मार पाना नहीं।
रात की चुप्पियों में माँ ने सुना
अपने भीतर की आवाज़ –
“क्या तुम इसी तरह झुकोगी?”
उसने उत्तर दिया –
“नहीं। मैं अपनी आत्मा को नहीं बेचना चाहती।”
अगली सुबह,
सूरज की पहली किरण ने छुआ उसके चेहरे को,
उसने कानूनी दस्तावेजों में अपनी शक्ति खोजी।
घर को बेचा –
चुपचाप, लेकिन मजबूत।
धमकियाँ आईं –
समाज की परछाइयाँ, बेटा, बहू –
पर अब माँ की आत्मा पत्थर जैसी अडिग थी।
खून में अब डर नहीं,
बल्कि अग्नि थी,
जो झुकने नहीं देती।
समाज ने जाना –
प्रेम केवल बलिदान नहीं,
सम्मान में जीना भी प्रेम का हिस्सा है।
स्वाभिमान कभी कमज़ोर नहीं होता,
भले ही दुनिया विपरीत हो।
माँ ने सीखा –
अकेले रहकर सच स्वीकार करना,
सच्चे सम्मान के साथ जीना,
कभी झुकने से बेहतर है।
माँ अब बोझ नहीं थी,
माँ अब – स्वतंत्रता की मूर्ति।
उसके कदमों की आवाज़,
उसकी सांसों का संगीत,
उसके खून की नदी में अब शक्ति बहती थी।
समाज ने देखा –
वह केवल माँ नहीं,
वह आज़ादी की प्रतिमूर्ति है।
और वह माँ –
अब अकेली नहीं,
अपनी आत्मा की आवाज़ में संपूर्ण थी।
जहाँ उसके स्वाभिमान की लौ
अंधेरों को चीरती है,
और उसके जीवन के हर क्षण को
सच्चाई और सम्मान से भर देती है।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




