तुम बन के स्पंदन मेरी अंतस में बसना,
मधुर मुस्कान बन मेरी अधरों से हँसना।
स्मृतियों की घनीभूत पीड़ा बन,
मेरी स्मृति में सदा यूँ ही रहना।
तुम बन के स्पंदन मेरी अंतस में बसना,
मधुर मुस्कान बन मेरी अधरों से हँसना।
ब्रम्ह मुहूर्त की शंखनाद ध्वनि बन,
सदा मन की गलियों में गूँजना।
नूपुर की मधुर झंकार बन,
समीर के मंद झोंकों से बजना।
तुम बन के स्पंदन मेरी अंतस में बसना,
मधुर मुस्कान बन मेरी अधरों से हँसना।
प्रकृति की अभिराम शालीनता-सी,
इन नयनों में सदा सजना।
अनकही रह गयी जो कथा हमारी,
तुम बन के ध्वनि मेरे कर्ण में कहना।
तुम बन के स्पंदन मेरी अंतस में बसना,
मधुर मुस्कान बन मेरी अधरों से हँसना।
🖋️सुभाष कुमार यादव