हम बनाते हैं रेत के किले,
जो पलभर में नष्ट हो जाने हैं |
बनाते हैं पानी के बुलबुले,
जानते हैं, कि वे क्षणभंगुर हैं |
रिमझिम बारिश में,कागज की नाव ,
कुछ देर में ही जलमग्न हो जाएंगी|
पानी में पत्थर फेंक बनाते हैं लहरें ,
जो कुछ ही देर में बिखर जानी हैं|
देखते हैं कितने ही रंगीन सपने,
जानते हैं, कि पूरे कितने ही हो पाएंगे |
जोड़ते हैं कितनी माया और रिश्ते,
जानते हैं, ये जीवन और संसार नश्वर हैं|
परन्तु, रेत के किले बनाने में,जो सुख है,
पानी के बुलबुले बनाने में, जो आनंद है|
कागज की नाव तैराने में, जो मज़ा है,
पानी में लहर बनाने में, जो सुकून है|
ये सुकून ही तो जीवन का आनंद है!
ये आनंद है अनमोल रस, इस नीरस जीवन में,
ये वही रस है जो जीवन को देता एक राह है!
जो बतलाता है, हर पल को जीना ही जीवन है|
-प्रियंका गुप्ता
[इंदौर]