तुम्हारा नाम सांसो में घुल-मिल गया।
जमानत कौन देगा जुल्म खुल गया।।
दौलत शोहरत के लिये नौकरी सही।
वक्त के साथ-साथ रास्ता बदल गया।।
तुम्हे समझना बहुत कठिन 'उपदेश'।
मोहब्बत के खातिर मन मचल गया।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद
New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|
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वक्त के साथ-साथ रास्ता बदल गया।।
तुम्हे समझना बहुत कठिन 'उपदेश'।
मोहब्बत के खातिर मन मचल गया।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद