सुकून
जीने के लिए खुशी के कुछ पल चाहिए,
कौन कहता है कि पैसे का ही बल चाहिए।
ईंटों से बने इन मकानों में दिल चाहिए
सुविधा बहुत हैं, सुकून के पल चाहिए।
जी रहा है वो मज़दूर खून-पसीना बहाते,
दिल में उसके उम्मीद का बल चाहिए।
रहते हैं पंछी मगर रेगिस्तान है यहाँ,
पीने को उन्हें भी थोड़ा-सा जल चाहिए।
या मौला ! लूटा है सब कुछ उसका बाढ़ ने
जीना है उसे, थोड़ा-सा आँचल चाहिए।
भीड़ में क्यों खो रहा है ये कमजोर आदमी,
नीड़ निर्माण करूँ, ये विश्वास अटल चाहिए।
आँधियाँ कितनी भी हों बाहर धन्यकुमार !
दीपक तो मन का बस अचल चाहिए।
धन्यकुमार जिनपाल बिराजदार, सोलापुर
सुकून
जीने के लिए खुशी के कुछ पल चाहिए,
कौन कहता है कि पैसे का ही बल चाहिए।
ईंटों से बने इन मकानों में दिल चाहिए
सुविधा बहुत हैं, सुकून के पल चाहिए।
जी रहा है वो मज़दूर खून-पसीना बहाते,
दिल में उसके उम्मीद का बल चाहिए।
रहते हैं पंछी मगर रेगिस्तान है यहाँ,
पीने को उन्हें भी थोड़ा-सा जल चाहिए।
या मौला ! लूटा है सब कुछ उसका बाढ़ ने
जीना है उसे, थोड़ा-सा आँचल चाहिए।
भीड़ में क्यों खो रहा है ये कमजोर आदमी,
नीड़ निर्माण करूँ, ये विश्वास अटल चाहिए।
आँधियाँ कितनी भी हों बाहर धन्यकुमार !
दीपक तो मन का बस अचल चाहिए।
धन्यकुमार जिनपाल बिराजदार, सोलापुर
सुकून
जीने के लिए खुशी के कुछ पल चाहिए,
कौन कहता है कि पैसे का ही बल चाहिए।
ईंटों से बने इन मकानों में दिल चाहिए
सुविधा बहुत हैं, सुकून के पल चाहिए।
जी रहा है वो मज़दूर खून-पसीना बहाते,
दिल में उसके उम्मीद का बल चाहिए।
रहते हैं पंछी मगर रेगिस्तान है यहाँ,
पीने को उन्हें भी थोड़ा-सा जल चाहिए।
या मौला ! लूटा है सब कुछ उसका बाढ़ ने
जीना है उसे, थोड़ा-सा आँचल चाहिए।
भीड़ में क्यों खो रहा है ये कमजोर आदमी,
नीड़ निर्माण करूँ, ये विश्वास अटल चाहिए।
आँधियाँ कितनी भी हों बाहर धन्यकुमार !
दीपक तो मन का बस अचल चाहिए।
धन्यकुमार जिनपाल बिराजदार, सोलापुर
सुकून
जीने के लिए खुशी के कुछ पल चाहिए,
कौन कहता है कि पैसे का ही बल चाहिए।
ईंटों से बने इन मकानों में दिल चाहिए
सुविधा बहुत हैं, सुकून के पल चाहिए।
जी रहा है वो मज़दूर खून-पसीना बहाते,
दिल में उसके उम्मीद का बल चाहिए।
रहते हैं पंछी मगर रेगिस्तान है यहाँ,
पीने को उन्हें भी थोड़ा-सा जल चाहिए।
या मौला ! लूटा है सब कुछ उसका बाढ़ ने
जीना है उसे, थोड़ा-सा आँचल चाहिए।
भीड़ में क्यों खो रहा है ये कमजोर आदमी,
नीड़ निर्माण करूँ, ये विश्वास अटल चाहिए।
आँधियाँ कितनी भी हों बाहर धन्यकुमार !
दीपक तो मन का बस अचल चाहिए।
धन्यकुमार जिनपाल बिराजदार, सोलापुर
9423330737


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







