वो जो किताबों में रंगीन थी, वो क़िस्मत कभी जीने की वजह हो नहीं सकी, मोहब्बत तो अज़ल से थी, मगर ये ज़िंदगी बा-वफ़ा हो नहीं सकी।
अरे वो आँखें जो शाम को तन्हा गुज़ारती हैं अक्सर, वो चाहत तो समंदर थी, पर इश्क़ में रवाँ हवा हो नहीं सकी।
हम सब ने बयान किया उसे एक ख़ूबसूरत जुमला समझकर, ये वो दर्द है जिसे लफ़्ज़ों की इजाज़त अता हो नहीं सकी।
जिसे हम ढूँढते रहे, वो सिर्फ़ ख़ुद की तलबी थी सायद, वो प्यार जो दूसरे के लिए था, वो ख़ुद में ब-ख़ुदा फ़ना हो नहीं सकी।
यहाँ ज़िस्म को तो मिली चाहत की तौक़ीर, पर रूह पर्दे में रही, वो रूहानी जोश जो क़ल्ब में था, वो ज़ाहिर किए बिना हो नहीं सकी।
वो वफ़ादारी जिसे हमने एक दूसरे से रोज़ माँगा है, किसी फ़र्ज़ से कम न थी, बस किसी किताब में अदा हो नहीं सकी।
तुमने तो कह दिया था उसे सिर्फ़ एक ख़्वाब की ग़लती, मगर वो ख़्वाब तो हक़ीक़त था, वो बस तेरी दुनिया में जायज़ रवा हो नहीं सकी।
ये इश्क़ की नज़र है, जहाँ सामने वाला फ़रिश्ता दिखता है, वो इंसान जो ग़लतियों से भरा था, वो खुले आम बयाँ हो नहीं सकी।
वो अहद जो किया गया था, वो रिश्तों की बेबसी में टूट गया, ज़रूरतों के क़ाफ़िले में थी, वो फ़ुर्सत कभी अदा हो नहीं सकी।
अरे मोहब्बत तो एक साज़ है, उसे छेड़ा गया सब के सामने, मगर जो धुँद थी भीतर, वो आवाज़ तो बा ख़ुदा जुदा हो नहीं सकी।
- ललित दाधीच

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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