अक्सर हम सोचते थे
कि वक्त की परिक्षाएँ उम्र भर चलती रहती हैं
पर गुज़रती उम्र ने अलग ही अनुभव दिया
कि बुढ़ापा आते ही सब परिक्षाएँ खत्म हो जाती हैं
और समय ब्याज समेत वक्त के हिसाब-किताब चुकाने का आ जाता है
जिसने बुढ़ापे के इंतज़ार में यौवन मौज मस्ती में गवा दिया
उसने अपने ब्याज की दरें बढ़ा लीं
और जो अपना यौवन सँवारता हुआ चला
वही अपने बुढ़ापे को सुखद बना पाया ..
वन्दना सूद