मुट्ठी में ब्रह्मांड
डॉ. एच सी विपिन कुमार जैन" विख्यात"
छोटी सी डिबिया, पर जग समाया इसमें,
दूरियाँ सिमटीं पल में, नाता हर किससे।
अंगुलियों के इशारे पर, ज्ञान का सागर लहराए,
मनोरंजन की दुनिया पलभर में खुल जाए।
कभी यह संदेशवाहक, प्रियजन की आवाज़ लाए,
कभी गुरु बनकर सिखाए, राह नई दिखलाए।
समाचारों की सरिता बहे, हर घटना पल-पल की,
सोशल मीडिया का आंगन, रिश्तों की रंगोली सजी।
पर मौन भी गहराए, जब यह नेत्रों में छाए,
वास्तविकता से कटकर, आभासी जग बनाए।
संबंधों की गर्माहट भी, इसमें कैद हो जाती है,
आमने-सामने की बातें, अक्सर गुम हो जाती हैं।
कभी यह भटका दे मन, अनगिनत रास्तों पर,
कभी यह जोड़ दे टूटे दिल, अनजान धागों पर।
यह अद्भुत यंत्र है, शक्ति अपार समेटे,
सद्उपयोग हो इसका, जीवन को सुंदर भेटे।
मुट्ठी में ब्रह्मांड लिए, हम चलते हैं हरदम,
सोच समझकर बरतें इसे, यही है सच्चा धरम।
तकनीक का यह चमत्कार, दे प्रगति की नई उड़ान,
पर मानवता का स्पर्श रहे, यही जीवन का मान।