एक नर कंकाल को,
स्कूटर पर जाते हुए देखा।
पिछली सीट पर,
काकी ताई को भी उछलते देखा।
चल रही थी तूफानी हवा,
श्मशान में।
दिखने लगे अपने काले कारनामे,
आसमान में।
अंकी इंकी टंकी लाल,
भ्रष्टाचार के तीन दलाल।
फैला रहे हैं,
षड्यंत्र का जाल।
चलकर घोड़े की ढाई चाल,
मचाते हैं बवाल।
चिल्लाते हैं ऐसे,
जैसे कर दिया कोई कमाल।
मुखिया गांव का,
पूछ रहा एक सवाल।
ढूंढे से नहीं दे पा रहे ,
अब तक कोई जवाब।