बहाना नये साल का लगा काम आ गया।
देखा भाला दिल भी क्यों गच्चा खा गया।।
दिल की सुनते वो लोग परवाह नही करते।
दिमाग लगाने वालों का ज़माना आ गया।।
सब्र का फल देखने के लिए दिन रात गए।
मजबूरी में वर्ष का आखिरी दिन आ गया।।
दिखते है सलीके के लोग मगर है ही नहीं।
दिल तड़पता ही रहा फिर जाम आ गया।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद