अभी तो शेष जलना है
तपना है खपना है
अग्नि में तपकर
कुन्दन बनना हैं
अभी तो शेष जलना है
अन्दर ज्वालामुखी धधकता
ऊपर बर्फ सी ठंडाई है
ऐसी ठंड ने भी कैसी
आग लगायी है
इस आग में तप कर
कुंदन बनना हैं
अभी तो शेष जलना हैं
दूर दूर तक खाईं है
न पगडंडी
ना राह बनायीं है
राही अनजान राहों पर
इक इक पग धरना है
अभी तो शेष जलना है
मंजिल वर्षों तक जली
इस अग्नि में तपी
तब जाकर सोने की
चमक पायीं है
मैं तो निम्न कोयले की डली
जल जल राख का ढेर बनीं
राख से ऊपर उठकर
अभी तो तपना है खपना है
तपकर कुंदन बनना है
अभी तो शेष जलना है
घनघोर घटाएं घिर आई है
पर तपस्या ज़ारी है
तप अग्नि में तपकर
कुंदन बनना है
अभी तो शेष जलना है
✍️#अर्पिता पांडेय