ये दुर्दशा देश की नहीं
बल्कि आदमी की हो रही है।
नियति नियत में सबकी खराबी
बस लोगों की बदहाली हो रही है।
क्यूं बंट रहें है लोग ?
क्यूं आपस में कट रहें हैं लोग ?
क्या लोगों की समझदारी
घांस चरने गई है !
गर वक्त रहते ना संभले तो
भाई तबाही हीं तबाही है।
लोगों ने क्या देश की
अपितु अपनी भी क्या भेष भूषा
बनाई है।
यहां तो बस आपसी उन्मादों की पल पल बढ़ रही गहरी खाई है।
क्या हमारे वीर सपूतों की जबांजी ने
हमें यही सिखाई है।
याद रख्खो पड़ोसियों के घरों
को तमाशा बनाने वालों
कल तुम्हारी भी बारी है
मिलकर ना रहें हम सब भारतीय तो
तबाही हीं तबाही बरबादी हीं बरबादी
छाई है।
देश के दुश्मनों ने तो यही योजना बनाई है..
पर तुम पढे लिखे हो तुम ये सोंचना ज़रूर
देश ये सदा सर उठा कर जिया है
तुम इसको सर झुकाने के लिए
ना करना मजबूर....
ना करना मजबूर.....