शीर्षक:- शाकाहार
सुमन गुप्ता
कंद-मूल खाने वालो से
मांसाहार डरते थे ।।
पोरस जैसे शूर-वीर को
नमन 'सिकंदर ' करते थे ।।
चौदह वर्षों तक खूंखारी
वन में जिसका धाम था ।।
मन - मन्दिर में बसने वाला
शाकाहारी '' राम '' था ।।
चाहते तो खा सकते थे वो
मांस पशु के ढेरो में ।।
लेकिन उनको प्यार मिला
''शबरी ''के जूठे बेरो में ।।