आदमी की सांस है आस का बसेरा है
नित नई शाम है नित नया सवेरा है ।।
बंद मुठ्ठी में हैं सपनो की लड़ी लंबी
हर कदम पे हो गया रंग अब सुनहरा है।।
राह मुश्किल है मगर मायूसियों को छोड़
धुंध के उस पार से रोशनी का पहरा है ।।
अजनबी कब तक स्वयं से यूं रहेगा भला
आस्था में पनपता प्यार का ककहरा है।।
हो सके जितनी भी खुशियां बांट लेना
"दास" कहां वक्त एक जगह ठहरा है।।
इस भीड़ से बचकर अब कहां जाएंगे हम
हर तरफ ही शोर है हर तरफ ही पहरा है।।