जश्न के पहले तैयारी बखूबी कर ली।
बैठ गए चार यार फिर ग्लास भर ली।।
एक घूंट में पी जाने का मजा रामराज।
खींचते वो टांग काजू की मुट्ठी भर ली।।
बाते फैंकते रहे जब तक होश में रहते।
बेहोशी की हालत में खर्राटे भर ली।।
असर जानते सब धंधा सेवा का करते।
गरीबी पर रोटी सेंकते आह उधार ली।।
मौका तलाश रहे 'उपदेश' टिकट का।
पैर ऐसे पड़ते जैसे आजादी उधार ली।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद