बिछड़ के तुझसे हुआ पत्थर, रोया ही नहीं,
बेशक तुझे पाया नहीं यानी खोया ही नहीं।
उसने एक बार छू लिया था मेरे रुमाल को,
आज तक आती खुशबू, उसे धोया ही नहीं।
आँसुओं की स्याही से लिखे दर्द की ग़ज़लें,
पढ़कर उन्हें मैं चैन से कभी सोया ही नहीं।
🖊️सुभाष कुमार यादव