थी उसे केवल सत्ता पानी
रची उसने तरकीब पुरानी
वस्त्र बदले व भाषा बदली
धर्म की पहनी फिर कम्बली
बुद्धिजीवी थे जो सारे के सारे
उसने उनके गले सवारे
अपने कुछ भजन और चालिसे
उसने बरजोरी लिखवा डाले
बजवाये ढोल गली मोहले
उकसाए लोग लगे गाने
गाते गाते हुए दीवाने
लगे उसे अवतार कहने
भूले अपनी मुश्किलें सारी
न रही याद भूख लाचारी
लगे पूजने नर और नारी
बरबाद हुई दौलत सारी
न काम रहा न रोजगारी
देश रहा न रही लोकशाही
चारो और थी तानाशाही
देश खोया खोई आज़ादी
था अब केवल राजा ही देश
था धर्म अब मानना आदेश
चालीसों भजनों के आवेश
में बनता है धूर्त लंकेश