मैं आंनद में डूब गयी थी, पाकर कृष्ण दरस
मन में उल्लास था, नैनो में थी प्यास कृष्ण
के दर्शन पाकर के मन आनन्दित हो गया।
तन कंपित हो गया हो!
तन और मन में नव ऊर्जा का संचार हुआ
जब आये मेरे कान्हा मेरे सन्मुख तो मन
आनन्दित हो गया!
चहुं ओर उल्लास था मन में आनंद का प्रकाश था
लताऐं भी लरहा गईं फूल भी
सब खिल ऊठे थे मानों कृष्ण के आने का
उन सबको भी इंतार था!
कवियित्री - सरिता मिश्रा जी