संवेदना का स्वर
डॉ. एच सी विपिन कुमार जैन" विख्यात"
ऊँचे-ऊँचे महल बनाए,
नाम कमाया, धन भी कमाए।
कपड़े पहने, चमके धज से,
पर भीतर से खाली, जिएँ निज स्वार्थ से।
विज्ञान में तूने खूब तरक्की की,
चाँद-सितारों पर भी पहुँच दिखी।
पर भूला तू, मानव का धर्म,
भूल गया तू, मानवता का मर्म।
करुणा कहाँ, दया कहाँ तेरी?
क्यों बनी है दुनिया इतनी अँधेरी?
देख पड़ौसी भूखा मरता,
तेरा दिल क्यों नहीं दुखता?
भेदभाव की दीवारें क्यों खड़ीं?
नफरत की आँधी क्यों है बढ़ी?
पहले तू मानव तो बन, प्यारे!
समेट ले सबको, बन उनके सहारे।
संवेदना का स्वर जब गूंजेगा,
तभी ये जग सच्चा सुख देखेगा।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




