सलीके से छिपाए थे
जो आंसू आंख में उसने
मेरी आंखों से तन्हाई में
समंदर बन के वो निकले ।
रोज़ पूछते थे खैरियत मेरी
भेजा करते दुआओं के पैगाम
काम कुछ वो नहीं आए
सिर्फ बातों के वली निकले ।
वो 'छोटे' लोग जिन्हें सब
हिकारत से देखा करते थे
जब पड़ा वक्त बुरा तो
हौंसले उनके ही बड़े निकले ।
चाहते तो सब ही थे
कुछ भला हो जाए उस बेवा का
इमदाद की जब बात आई
तो कुछ इधर कुछ उधर निकले ।
बुलावा उसने भेजा था
तो क्यों रुकता भला कोई
छोड़ के इस फ़ानी दुनिया को
सफर को जन्नत की वो निकले ।
- केवल कृष्ण