👉 बह्र - बहर-ए-रमल मुसद्दस महज़ूफ़
👉 वज़्न - 2122 2122 212
👉 अरकान - फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन
ज़ीस्त हो गर काटनी आराम से
काम रखिये आप अपने काम से
साथ जिसके यार हों डटकर खड़े
क्यूँ डरे वो गर्दिश-ए-अय्याम से
इश्क़ के आगाज़ से ख़ुश आदमी
डर गया है इश्क़ के अंजाम से
यार क्या दुश्मन भी मेरे सब मुझे
जानते हैं अब तुम्हारे नाम से
सँग जो भी वक़्त के चलते नहीं
लोग रह जाते हैं वो गुमनाम से
देख कर होता है जो आँखें तेरी
वो नशा होता नहीं अब जाम से
याद आया आज फ़िर वो संग-दिल
फ़िर धुँआ उट्ठा दिल-ए-नाकाम से
'शाद' दिन तो कट ही जाता है मगर
दिल ये डर जाता है ज़िक्र-ए-शाम से
@विवेक'शाद'