संभल कर क़दम रखना
जिंदगी में ज़रा संभाल कर कदम रखना,
यहाँ लोग फिसलने को मजबूर करते हैं।
कहीं रेत की तरह तो कहीं तेल की तरह,
कहीं खुदरा तो कहीं चिकना फर्श की तरह।
हर रोज डगमगाता है कदम मेरा बहुत,
अब मेरी नैय्या पार किसने लगाई है।
अब तो जाना है समंदर की ओर “सुप्रिया”,
कदम बढ़ाने को दिल से आवाज आई है।
- सुप्रिया साहू