स्नेह बंधना में बंधना
प्रणय रीत में सधना
तुम्हारे लिए सदा सृंगार
करना, अर्पण है प्रिये।
अनुकृत सी वेदना सहना
स्वभाव सिद्ध का स्मृत रहना
लहू को स्वात में कहना
समर्पण है प्रिये।
इश्क की हसरतों का मचलना
छुपी ख्वाहिशो का पिघलना
बरबस ही बातो का बदलना
उर का दर्पण है प्रिये।
लरजती निगाहों का तकना
चितवन के तीर का अंतः में धसना
विमोहित अदाएं करना
अधरन का तर्पण है प्रिये।
----उषा श्रीवास वत्स